गुरुवार, 2 दिसंबर 2021

 पाठ 1

सांख्य दर्शन के आने के बाद प्रकृति का अध्ययन हुआ। गीता में प्रकृति को त्रिगुणात्मक माना हे। पदार्थ भी त्रिगुणात्मक हे। इन तीन तत्वो ंसे ही सारी सृष्टि का पसारा हे। आज का विज्ञान भी वरमाणु के तीन यही विभाजन करता हे। हिन्दू परम्परा में , ब्रह्या सृष्टि के जन्मदाता है , विष्णु पालक हैं तथा शिव संहारक हे। इन तीन गुणों के आधार पर ही ये तीन देवता आगए। 


स्वामीजी समझााते थे , यह नाद श्रवण ही साधन मार्ग था। यही प्रणव साधना है। बाद में ओम का जप आगया । फिर ये तीन देवता आगए। ये तीन देवता प्रकृति के सूक्ष्म विभाजन , सत , रज ,तम के प्रतीक हैं। बाद में पुराण आए। नए-नए देवता कल्पित किए जाते रहें , यह परंपरा आज भी चल रही हेैै।सनातन धर्म की गत्यात्मक परंपरा है, जहाॅं प्रणव ही मूल है कालांतर अपनी अपनी परंपरा में हिन्दू धर्म , बौद्ध धर्म , जैन धर्म और सिक्ख धर्म इसीसे विकसित हुए। सनातन धर्म का कोई एक प्रवर्तक नहीं हेै। नहीं कोई एक ग्रंथ है। यहाॅं धर्म का शाश्वत अर्थ परम का विज्ञान हे। चेतना का विज्ञान है। उसे ही ब्रह्यविज्ञान कहा जाता हैे। इसी साधना के महान ऋषि इस परंपरा में संत गुरुनानक देव हुए हैं।  


गुरुनानक देव ने अपनी साधना का प्रारम्भ इसी आंकार  साधना से किया। यह उनके आगमन से पूर्व गोरखनाथ की साधना का प्र आधार था। परन्तु यह साधना उनके यहाॅं योग साधन से जुड़ गई थी। उनके बाद तांत्रिको के हाथ में आकर इस साधना ने विकृत रूप ले लिया था। गुरु नानक देव ने इस साधन को भक्ति से जोड़कर एक नया ही पथ सौंपा जो आम जन के लिए श्रेयस्कर था।