गुरुवार, 15 जनवरी 2015

भूल बिसरे चित्र अरूण सैदवाल


भूल बिसरे चित्र


अरूण सैदवाल 

अरुण सैदवाल झालावाड़ जिले के रहने वाले थे। वे भारतीय प्रशासनिक सेवा की सहयोगी  सेवा डिफेंस एकाउन्ट्स में चयनित होकर देहली चले गए थे। वे अर्थशास्त्र में प्रारम्भिक वर्षों  में प्राध्यापक भी रहे थे। मेरे मित्र प्रीतम चोयल के पुत्र से उनकी बेटी का विवाह हुआ था। उस विवाह में ही उनसे मेरा परिचय पहली बार हुआ था। वे सेवानिवृत्ति के बाद कोटा आगए थे। विकल्प की काव्य गोष्ठियों में उनके कवि रूप से परिचय मिला था। वे उच्च प्रशासनिक सेवा से आए थे , पर वे इसका अहसास किसी को होने नहीं देते थे उन्होंने प्रेमजी प्रेम की राजस्थानी कविताओं का अंग्रेजी में अनुवाद किया था। बच्चों के लिए एक विज्ञान कथा भी लिखी थी , जो चिल्डरन बुक हाउस से प्रकाशित हुई्र थी। वे जीवन के अतिम दिनो में हाड़ौती शब्द कोश पर कार्य कर रहे थे। उनका प्रोजेक्ट मैसूर की किसी संस्था से स्वीकृत हुआ था। उन्होंने कोटा में एक कार्यशाला भी आयोजित की थी। विकल्प संस्था की ओर से प्रकाशित अभिव्यक्ति के अंक में हितेष व्यास ने उन पर आलेख लिखा था।


अरूण सैदवाल के अविकल्प (1979) तथा करवट लेता समय (2003) प्रकाशित हुए हैं। उनकी कविताओं की एक काव्य पुस्तिका भी विकल्प ने प्रकाशित की थी। जिसका संपादन अंबिका दत्त ने किया था।
 

सैदवाल, की कविता, महानगर में अपनी पहचान तलाशते उस नागरिक की व्यथा-कथा है जो संपूर्ण जिम्मेदारियों के वहन करने के बावजूद पाता है कि वह अपनी अस्मिता को, खोता जा रहा है,... झील में डूबते हुए... उस व्यक्ति की छटपटाहट जो हर तिनके को सहारा पाकर, तट पर आना चाहता हैं... शायद थोड़ा सुकून वह पा जाए,... मार्मिक मनः स्थितियां तथा पारदर्शी भाषा, ... हर पल तेजी से कैनवास पर बिखरते रंगों से संगफझन की चाहत में उपजते दृश्य बिम्ब, उनकी कविता की अपनी विशेषताएं है-

‘‘ अब मैं चुपचाप उनकी
साजिशों में शामिल होने लग गया हंू।
दोस्त ठीक ही कहते हैं
अब मेरे पेट की चर्बी 
और चेहरे की चमक बढ़ने लगी है...
‘काम का आदमी’ पृ.11

झटका या हलाल
दोनों में से किसी एक मौत को
चुनने की
मुझे पूरी आजादी है
यह विकल्प भी है
मेरे ऊपर की गई
कितनी बड़ी मेहरबानी है
(विकल्प)

डॉ. गंगा प्रसाद विमल ने ‘करवट लेता समय’ के पुरोवाक में उनकी काव्य प्रक्रिया पर जो टिप्पणियां दी है, वह विवेचनीय है- ‘वे साधारण-सी स्थितियांे को अपने अनुभव-संसार का हिस्सा बनाते हैं और फिर उसे एक सार्वजनिक से अनुभव में डाल देते हैं। ‘स्व’ से ‘एकदम’ पर की दुनिया की प्रतीती शब्दों के स्तर पर नहीं हो सकती।... परन्तु ‘सैदवाल’ एक सहज सृजन कर्मी की तरह उसका सजग और संयत इस्तेमाल करते हैं।

डॉ. कलानाथ शास्त्री ने, कृति की समीक्षा में (मधुमती जून 2004) कहा है कि -“संकलन, करवट लेता समय’- जिस एक शब्द से भी परिभाषित किया जा सकता है, वह शब्द है, ‘वैविध्यमय’। इसमें कथ्य और शिल्प की विविधता तो है ही भाषा वैविध्यमयी है... साधारण सी साधरण स्थिति भी कवि की व्यंजना का स्पर्श पाकर, जिस दृश्य बिम्ब को सघनता में अभिव्यंजित कर देती है,... वह भाषा गत योजना कवि की अपनी है ।”

“देखिएगा
कुछ बरसों बाद
पहले आएगी खबर,
बाद में होगी घटना
वह दिन दूर नहीं
जब इंटरनेट पर देख लूंगा
मैं अपनी मृत्यु का समाचार
और अगले दिन पाएंगे
लोग मुझे मुरदा।” (समाचार-पृ. 70

तमिल के उपन्यासकार मुरुगन ने यही तो किया हें इंटरनेट पर लिखा है, उपन्यासकार मुरुगन नहीं रहे , शिक्षक मुरुगन जीवित है। साहित्यकार की इसी व्यथा को सैदवाल ने अपने शब्द दिए थे।

...वह साधारण सी स्थित का चयन करता है... वह उसकी अनुभति का स्पर्श पाकर,... एक वृहद आयाम को सौंप जाती है... काव्य भाषा में यह सांकेतिकता.. संक्षिप्तता तथा तरलता यहां दृष्टव्य है-
‘मेरे पास है सिर्फ़
एक आवाज
हो सकता है
तुम्हारे काम आए।

सैदवाल कविता प्रेमी थे। अंग्रेजी , हिन्दी , हाड़ौती पर उनका अधिकार था। पता नहीं क्यों हम अपने सीमित दायरे से बाहर नहीं झांक पाते। वे केन्द्रिय प्रशासनिक सेवा से वर्षों बाहर सेवारत रहकर अपने घर आए थे,  वे अपने आपको कविता को समर्पित करने के बाद भी मित्रों से दूर ही समझते रहे। प्रेमजी प्रेम की हाड़ौती  कविताओं का अंग्रेजी में अनुवाद उनका अंचल के प्रति प्रेम था। पता नहीं क्यों , हम जो अभी- अभी हमारे बीच से उठकर गया है, इतनी जल्दी उसे भूल जाते है।

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